अम्बा अंबिका अंबालिका महाभारत कथा | Amba sampoorna mahabharat

अम्बा अंबिका अंबालिका

 

पूर्व में हमने पढ़ा किस प्रकार शांतनु सुगंध की खोज करते-करते सत्यवती तक पहुंचते हैं। सत्यवती की प्राप्ति के लिए देवव्रत को भीष्म प्रतिज्ञा लेनी पड़ती है।शांतनु और  सत्यवती का विवाह होता है उनके पुत्र विचित्रवीर्य व  चित्रांगद का जन्म होता है। अब आगे…………………………………………………………

 

हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी –

चित्रांगद  ,  शांतनु – सत्यवती  का बड़ा पुत्र था जिसके कारण उसे राज सिंहासन पर बैठने का अधिकार मिलता है।  राज्याभिषेक के लिए भव्य समारोह का आयोजन किया जाता है।किन्तु एक गंधर्व युद्ध में चित्रांगद की मृत्यु हो जाती है।कुछ समय बाद विचित्रवीर्य हस्तिनापुर के राजसिंघासन पर बैठता है। किन्तु विचित्रवीर्य अभी कम उम्र का था जिसके कारण भीष्म को राज- काज चलाना पड़ा।

बड़ा होने पर सत्यवती को  विचित्रवीर्य के विवाह की चिंता हुई। हस्तिनापुर को  अगला  उत्तराधिकारी मिले यह सोचकर उन्होंने भीष्म के समक्ष विचार रखा। सत्यवती के आदेश जिसको पूरा करने के लिए भीष्म ने एक अवसर की तलाश की , वह अवसर था काशी नरेश की पुत्री – अम्बा , अम्बिका  , अम्बालिका    का स्वयंवर।

 

अम्बा अंबिका अंबालिका का हरण 

किंतु काशी नरेश ने प्रतिशोध और बदले की भावना से हस्तिनापुर में स्वयंबर का न्योता नहीं भेजा। भीष्म अत्यधिक क्रोधित हुए वह स्वयंबर में उपस्थित हुए। स्वयंबर में भीष्म के उपस्थिति पर सभी राजाओं ने उनका उपहास अपने – अपने मन के अनुसार उड़ाया।

सब यह प्रश्न करने लगे कहीं  भीष्म ने प्रतिज्ञा तो नहीं तोड़ दी। भीष्म ने सभी को प्रत्युत्तर देते हुए ललकारा। भीष्म ने काशी के  तीनों कन्याओं को अपने साथ चलने के लिए कहा। सभी राजाओं ने भीष्म पर एक साथ आक्रमण कर दिया। किसी भी राजा में अकेला सामना करने का साहस नहीं था। भीष्म ने इस आक्रमण का जवाब भी उन्हीं के शब्दों में दिया। भीष्म ने जल्द ही विजय प्राप्त कर ली और तीनों कन्याओं को लेकर हस्तिनापुर की और बढे।

 

भीष्म जब तीनो कन्याओं को लेकर हस्तिनापुर की ओर चले। सोमदेश के राजा शाल्व ने उनका रास्ता रोका और वीरोचित युद्ध किया।  सोमदेश के राजा शाल्व  का साहस देखकर भीष्म प्रसन्न हुए।राजा शाल्व  काशी नरेश की बड़ी पुत्री अम्बा से प्रेम करते थे। अंबा  भी  शाल्व से प्रेम करती थी। युद्ध में जब शाल्व परास्त हो गए तो , अम्बा ने भीष्म से प्रार्थना की , कि वह शाल्व को जीवनदान दे।  अंबा के विनय पर भीष्म ने राजा शाल्व को जीवनदान दे दिया।

 

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अम्बिका अम्बालिका का विचित्रवीर्य से विवाह

भीष्म तीनों कन्याओं को लेकर हस्तिनापुर पहुंचे।  तुरंत ही विवाह की तैयारियां होने लगी। अम्बा ने भीष्म और महारानी सत्यवती को अपने प्रेम राजा शाल्व से करने की बात कहीं। भीष्म ने आश्वासन दिया और उचित आदर-सत्कार के साथ राजा शाल्व के पास अम्बा को भिजवाने का प्रबंध कर दिया।

अम्बा राजा शाल्व के यहां पहुंची किंतु शाल्व  ने अम्बा के प्रेम को यह कहते हुए  अम्बा को वापस लौटा दिया कि ” वह जीती हुई और दान की हुई वस्तु को स्वीकार नहीं करते। “

अम्बा अब निराशा के सागर में डूब गई थी। अम्बा को उसका  प्रेम  प्राप्त नहीं हुआ। वह हारकर हस्तिनापुर वापस लौट आती है। यहां  हस्तिनापुर के राजा विचित्रवीर्य , अम्बा को स्वीकार नहीं करते उससे विवाह नहीं करना चाहते। विचित्रवीर्य का कहना था –  ” जिस कन्या ने अपने मन से किसी और पुरुष को प्रेम किया हो , अपना सर्वस्व अर्पण किया हो मैं उससे विवाह नहीं कर सकता। ”

अम्बा अंबिका अंबालिका
अम्बा अंबिका अंबालिका

अम्बा का भीष्म से प्रतिशोध

अम्बा का अब कोई सहारा नहीं था , वह भीष्म के पास जाती है और उनसे निवेदन करती है कि अब वह स्वयं मुझसे विवाह करें।  भीष्म ने  ही अम्बा का हरण किया था इसलिए भीष्म का अधिकार होता है कि वह स्वयं अंबा से विवाह करें।

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भीष्म ने सत्यवती के पिता को आजीवन अविवाहित रहने का  वचन दिया था। अतः भीष्म  उस वचन से बंधे हुए थे। भीष्म अब धर्म संकट में फंस गए बीच में ने अंबा को आश्वासन दिया कि वह विचित्रवीर्य से पुनः बात करेंगे। भीष्म की बातचीत का विचित्रवीर्य और शाल्व पर कोई फर्क नहीं पड़ा।  भीष्म का प्रयास  विफल रहा।

भीष्म के प्रतिज्ञा में बंधे होने के कारण अम्बा का अब कोई सहारा नहीं था। अंबा प्रतिशोध की आग में जलने लगी , भीष्म से बदला लेने के लिए अब वह सभी राजाओं से सहायता मांगने उनके पास गई।   किसी राजा में भीष्म का सामना करने की साहस ना थी अतः अम्बा की सहायता किसी राजा ने नहीं की  । अम्बा अब  बेसहारा और असहाय हो चुकी थी , उसका कोई आश्रय नहीं था।अंबा ने भगवान कार्तिकेय की घोर तपस्या की जिसके फलस्वरुप कार्तिकेय प्रसन्न हुए अम्बा को  वरदान स्वरुप  एक सदा ताजा रहने वाली माला दी और यह बात भी बताई कि यह माला जिसके गले में डाला जाएगा वही भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगा।

वरदान देकर  कार्तिकेय अंतर्ध्यान हो गए।अंबा वह माला लेकर पुनः सभी राजाओं के पास गई किंतु किसी भी राजा ने अम्बा  की सहायता करने का सामर्थ्य नहीं जुटाया। अंत में अम्बा , पांचाल नरेश द्रुपद  के पास गई। वह शक्तिशाली राजा थे किंतु द्रुपद ने अम्बा की एक बात न सुनी और भीष्म से शत्रुता मोल लेने का सामर्थ नहीं जुटा पाए। अतः उन्होंने अम्बा  को वापस भेज दिया।अम्बा  प्रतिशोध अग्नि में जल रही थी।

अम्बा  द्रुपद के महल से निकली और माला उसके द्वार पर फेंक कर वहां से चली गई।अम्बा  सारे क्षत्रियों से निराश हो चुकी थी। अब वह भगवान परशुराम के पास जाती है। परशुराम जिन्होंने इस पृथ्वी को क्षत्रियों से मुक्त किया था। यह आशा लेकर अम्बा उनकी शरण में जाती है। परशुराम को अपनी पीड़ा और पूरे घटनाक्रम को सुनाती है  ,  परशुराम अम्बा के दुख से दुखी हो जाते हैं। परशुराम अंबा की सहायता के लिए भीष्म को युद्ध के लिए ललकारते हैं।  भीष्म भी क्षत्रिय थे , ललकार सुनकर मैदान में आ जाते है।  दोनों महान योद्धा थे और ब्रह्मचारी भी , युद्ध कई दिनों तक चलता रहा। किंतु अंत में परशुराम अपनी हार मान कर पीछे हट गए।अम्बा  की समस्या का कोई हल नहीं निकला , उन्होंने अम्बा को कहा पुत्री ! मैं तुम्हारे लिए जितना कर सकता था , कर सका , अब मेरा सामर्थ नहीं है।

 

अंबा को यहाँ भी निराशा हाथ  लगी। वह  दुखी होकर भगवान शिव की घोर तपस्या करने लगी। भगवान शिव प्रसन्न हुए और अम्बा को मनोकामना की पूर्ति का वचन दिया। भीष्म की मृत्यु अगले जन्म में तुम्हारे द्वारा होगी यह वचन भी दिया।अंबा यह वचन सुनकर यथाशीघ्र वहीं एक चिता तैयार की और अपने प्राण त्याग दिए।

 

अम्बा का पुनर्जन्म शिखंडी रूप में

अगले जन्म में अंबा राजा द्रुपद के यहां कन्या के रूप में जन्म लेती है।अम्बा को पूर्व जन्म की सारी बातें स्मरण थी। एक  दिन की बात है ,अम्बा  उसी माला को जो पूर्व जन्म में द्वार पर फेंक कर चली गयी थी , वह माला उठाकर  अपने गले में डाल लेती है। इस घटना से राजा द्रुपद दुखी होते हैं और अपने देश से अंबा  को निकाल देते हैं। द्रुपद  भीष्म से कोई शत्रुता मोल नहीं लेना चाहते थे।अंबा वन में जाकर घोर तपस्या करती है अपने तपोबल से वह स्त्री रूप का त्याग कर पुरुष रूप धारण करती है। अब अंबा  , शिखंडी के नाम से जानी जाती  हैं।

हस्तिनापुर में विचित्रवीर्य का स्वास्थ्य खराब होने के कारण विचित्रवीर्य की मृत्यु हो जाती है। अम्बिका  , अम्बालिका   को  विचित्रवीर्य से कोई संतान नहीं थी।  हस्तिनापुर के उत्तराधिकारी की चिंता सत्यवती को सताने लगी। राजमाता सत्यवती ने  भीष्म को बुलाकर अम्बिका  , अम्बालिका  से विवाह का आदेश दिया। किंतु भीष्म  अपने वचन से बंधे हुए थे , वह राजी नहीं हुए।  सत्यवती के पिता दासराज आकर अपना लिया हुआ वह वचन वापस ले लेते हैं।  भीष्म नहीं मानते उनका स्पष्ट कहना है – ” क्षत्रियों का वचन उनकी प्रतिज्ञा , मृत्यु के साथ ही टूटती है। “

सत्यवती को कोई अन्य मार्ग न सुझा। कुछ समय पश्चात  सत्यवती ने भीष्म को यह आज्ञा दिया कि वह मुनी व्यास को आमंत्रित करें।

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