कुतुब मीनार का इतिहास
Kutub minar architecture
जैसा कि हम सब जानते हैं कि मीर कासिम के आक्रमण से भारत में विदेशी लुटेरों का आना शुरू हो गया था। उन्ही लुटेरों में से एक था मोहम्मद गौरी जिसने पृथ्वीराज को हराकर दिल्ली को दोनों हाथों से लूटा और वह सोमनाथ मंदिर तक पहुंच गया। मोहम्मद गौरी की मृत्यु पोलो खेल खेलते समय घोड़े से गिरकर लाहौर में मौत हो गई।
मोहम्मद गौरी का सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक था उसी ने विचार किया कि क़ुतुब मीनार बनाया जाए।किंतु कुतुबुद्दीन ने सिर्फ एक ही मंजिल का निर्माण करवाया था की उसकी मृत्यु हो गई। कुतुबुद्दीन की मृत्यु के पश्चात उसके दमाद इल्तुतमिश ने अधूरे काम को पूरा किया जो आज विश्व का सबसे ऊंचा टावर के रूप में प्रसिद्ध है। मोहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन के बयान से स्पष्ट होता है कि क़ुतुब मीनार की आधार हिंदू मंदिरों के विध्वंस पर टिकी है।
कुत्तुब्बुद्दीन ने मीनार की दीवारों पर लिखवाया था कि उसने कुतुब परिसर का निर्माण 27 मंदिरों को गिराकर करवाया था , और उसी के मलबे से मीनार का निर्माण किया यह माना जाता है कि उस समय मीनार का प्रयोग नमाज के लिए किया जाता था।
‘ कुतुब ‘ शब्द का अर्थ है – ‘ स्तंभ ‘ जो न्याय संप्रभुता का प्रतीक है।
कुतुब मीनार महरौली में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान जहां कुतुब परिसर है , वह सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्न रहे वराहमिहिर के नाम पर बसाया गया था। जिसका समय के साथ नाम बदलकर महरौली हो गया। वराहमिहिर एक विख्यात खगोलशास्त्री थे उन्होंने यहां खगोल विद्या , व नक्षत्रों के अध्ययन के लिए स्तंभों व 27 मंदिरों का निर्माण करवाया था। उसी स्तंभ व 27 मंदिर को तोड़कर कुतुब मीनार का निर्माण किया गया।
स्तंभ में उकेरे गए देवी-देवताओं की मूर्तियों , संस्कृत में लिखे गए श्लोकों को क्षति पहुंचाई गई और दीवारों व वीथिकाओं पर हिंदू देवी देवताओं के अवशेषों को मिटाया गया। अथवा प्रसिद्ध विष्णु मंदिर को भी नष्ट किया गया जिसका अवशेष लौह स्तंभ , कुतुब मीनार के ठीक सामने 2000 वर्ष से गवाही देता है। जिस पर ब्राह्मी व संस्कृत में हिंदू मंदिर व हिंदू परिसर होने का साक्ष्य उपलब्ध है।
कुतुबमीनार के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह बारहमिहिर द्वारा कराए गए निर्माण में से ही एक है , क्योंकि नमाज के लिए ऐसे मीनार का निर्माण नहीं करवाया जा सकता , क्योंकि आवाज ऊपर से नीचे की ओर इतनी दूर तक नहीं आ सकती। ध्यान देने वाली बात यह है कि उस समय यांत्रिक उपकरण व ध्वनि विस्तारक यंत्र नहीं हुआ करते थे। यह मीनार मंदिर परिसर का ही एक अंग था जो 7 मंजिल का हुआ करता था। इस स्तंभ के सातवें मंजिल पर ब्रह्मा जी की मूर्ति थी जो हाथों में वेद को धारण किए हुए थी। अथवा विष्णु जी की मूर्ति छठी मंजिल पर स्थित थी। उन दोनों मंजिलों को नष्ट कर दिया गया। अब केवल 5 मंजिल ही बची है कदाचित उन हिंदू अवशेषों को नष्ट करने के लिए ही 2 मंजिल को गिराया गया।
आपको स्मरण रहना चाहिए कि यह मीनार विष्णु ध्वज , विष्णु स्तंभ या ध्रुव स्तंभ के नाम से प्रसिद्ध था। इसके ठीक सामने लौह स्तंभ गरुड़ध्वज के रूप में शुद्ध लोहे को ढालकर बनाया गया था जिसपर ब्राह्मी लिपि अथवा संस्कृत भाषा में लिखा गया है , जो इसका एक प्रमाण है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। 2000 वर्ष से लौह स्तंभ अब भी जंग रहित है और शायद इसी कारण इस्लामी शासक चाहते हुए भी उसे मिटा न सके हो। सम्राट चंद्रगुप्त ने राजा चंद्र की याद में इसका निर्माण करवाया था। इस लोहे की शुद्धता व जंग रहित होने के कारण आज भी विज्ञान को चुनौती देता है स्मरण रहे की लौह स्तंभ की आयु लगभग 2000 वर्ष है।
अब संघ पर बनेगी फिल्म नाम संघ या भगवाध्वज
” राम – राज फिर आएगा , घर – घर भगवा छाएगा”
भगवा अग्नि का प्रतीक है। जिस प्रकार अग्नि सारी बुराइयों को जलाकर स्वाहा कर देती है , उसी प्रकार भगवा भी सारी बुराइयों को समाज से दूर करने का प्रयत्न कर रहा है। संपूर्ण भारत भगवामय हो ऐसा संघ का सपना है। यहाँ हमारा भगवा से आशय बुराई मुक्त समाज से है।
इस भगवा ध्वज को ‘ श्री रामचंद्र ‘ ने राम – राज्य में ‘ हिंदूकुश ‘ पर्वत पर फहराया था , जो हिंदू साम्राज्य के वर्चस्व का परिचायक है। इसी भगवा ध्वज को ‘ वीर शिवाजी ‘ ने मुगल व आताताईयों को भगाने के लिए थामा था। वीरांगना लक्ष्मीबाई ने भी साँस छोड़ दिया , किंतु भगवा ध्वज को नहीं छोड़ा।
इस भगवा प्लेटफार्म से हम हिंदू अथवा हिंदुस्तान के लोगों से एक सभ्य व शिक्षित समाज की कल्पना करते हैं। जिस प्रकार से राम – राज्य में शांति और सौहार्द का वातावरण था , वैसे ही राज्य की कल्पना हम इस समाज से करते हैं।
हिन्दू सनातन धर्म के प्रति आस्था
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