गौ पालन भारतीय संस्कृति
देश के लिए वरदान है गोपालन। भारत की संस्कृति संसार के प्राणी मात्र के लिए संवेदनशील रही है , उसने सदैव आत्मवत् सर्वभूतेषु की परिकल्पना करते हुए प्रकृति के जड़-चेतन सभी में सजीवता का अनुभव करते हुए उन्हें ना केवल आदर दिया अपितु उसके संरक्षण एवं संवर्धन के लिए निरंतर प्रयासरत है , फिर गाय को तो हमारी संस्कृति में माता की मान्यता दी गई है। माता का स्थान स्वर्ग से भी महान बताया गया है। माता शिशु का पालन – पोषण करते हुए अपने परिवार समाज और राष्ट्र के लिए सुयोग्य एवं संस्कारवान नागरिकों का निर्माण करती है , परंतु गाय उससे भी बढ़कर बालक के पालन पोषण में सहयोग देते हुए उसे धार्मिक , सामाजिक , आर्थिक , शारीरिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से श्रेष्ठ एवं स्वावलंबी बनाती है। यही कारण है कि प्राचीन काल में हमारे धार्मिक ग्रंथों में गायों को धन संपत्ति प्रदाता के रूप में मान्यता देकर पूजा जाता रहा है उनकी सुरक्षा की जाती रही है।
भगवान श्रीकृष्ण / LORD KRISHNA –
भगवान श्रीकृष्ण को जहां ईश्वरीय अवतार माना जाता है। वहां उनके ग्वाले के सहज सुलभ रूप का भी वर्णन मिलता है। बाल – गोपाल , गोविंद आदि नाम कृष्ण के गायों के सम्मान के प्रतीक रूप में ही है गाय को सुरभि नाम से भी संबोधित करते हुए उनके स्वर्गिक निवास को गोलोक की संज्ञा दी गई है। भारतीय विचारधारा के अनुरूप गायों में 33 करोड़ देवताओं के निवास की कल्पना की गई है , क्योंकि देवताओं के अनेक गुण गायों के स्वभाव एवं क्रियाओं में देखने को मिलते हैं। गायों के दूध में अमृत के गुणों का प्राचार्य मिलता है। प्रायोगिक रुप से देखने में आया है कि स्वदेशी गाय के दूध में विशेष गुण एवं स्वास्थ्य वर्धक तत्व रहते हैं , जबकि अन्य पशुओं के दूध में यह गुण नहीं रहते। यही कारण है कि समस्त पूजा विधियों में गाय के दूध का ही प्रयोग किया जाता है।
कामधेनु KAMDHENU –
गायों को कामधेनु भी कहा जाता है। इनका पालन पोषण और इनकी सेवा से मानव की समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है। पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार ऋषि जन्मदग्नि की एक कामधेनु गाय थी। जिससे उनकी समस्त प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति होती थी। महाराजा दिलीप के कोई संतान नहीं होने पर उन्होंने गाय कि तन – मन से सेवा की और उन्हें एक सुयोग्य संतान की प्राप्ति हुई। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी गाय मानव जीवन में महत्वपूर्ण योगदान देती है। गायों से पंचगव्य की प्राप्ति होती है इसमें दूध , दही , घी , गोमूत्र और गोबर का पंचगव्य के रूप में वर्णन है। दूध , दही और घी जहां एक और मानव स्वास्थ्य की वृद्धि आरोग्य मानसिक उन्नयन और बौद्धिक विकास के लिए उपयोगी रहता है। वहीं गोमूत्र से अनेक प्रकार की दवाइयों और कीटनाशकों का निर्माण होता है , यह रोग निवारण और फसल संरक्षण के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ है। गाय के गोबर से घर – आंगन की लिपाई करने से हानिकारक कीट – पतंग से सुरक्षा होती है। गोबर कृषि फसलों के विकास और वृद्धि के काम आती है इससे भूमि में उर्वरा शक्ति बढ़ती है।
ऊर्जा का निर्माण PRODUCTION OF ENERGY
वर्तमान में ऊर्जा के संसाधन के रूप में भी गायों का पर्याप्त योगदान है। गोबर गैर पारंपरिक ऊर्जा का एक अक्षय स्रोत है। पेट्रोल-डीजल , कोयला जैसे संसाधन व्यय साध्य है और समाप्ति की ओर बढ़ रहे हैं , वहीं दूसरी ओर उनसे निसृत कार्बन डाइऑक्साइड जैसी जहरीली गैस से वायुमंडल को प्रदूषित कर मानव अस्तित्व के लिए खतरा बनी हुई है। गोबर से ऊर्जा रूप में प्राप्त गैस ना केवल सस्ती और सुलभ रहेगी वरन इस से बिजली उत्पन्न करने से ना केवल 14 करोड़ लीटर इन धन व्यय बचेगा और इससे 50000000 टन कार्बन उत्सर्जन भी रुकेगा। साथ ही कच्चे तेल पर विजय होने वाले करोड़ों रुपयों की बचत भी होगी। इसी दृष्टि से उत्तराखंड के नैनीताल जिले में हल्दूचौड़ स्थित नित्यानंद आश्रम में संचालित गौशाला में लगभग 3000 गायों का पालन पोषण होता है। रुड़की स्थित स्वामी रामदेव जी की संस्था पतंजलि भी गायों के संरक्षण व उसके उत्पादन के लिए अपना योगदान दे रही है। उनसे पंचगव्य की प्राप्ति के अतिरिक्त गोबर और गोमूत्र के संयंत्र लगाकर बिजली , औषधि व जैविक खाद आदि का निर्माण कर रही है। गोबर से आश्रम के चोरों को ऊर्जा तथा बिजली मिलती है गोबर संयंत्र से अवशिष्ट भाग को कृषि में खाद्य के रूप में प्रयोग किया जाता है तथा इस संयंत्र से उत्पादित बिजली का कुछ भाग बेच कर आमदनी भी की जा रही है। गोबर की जैविक खाद से कृषि उत्पादन तो बढ़ ही रहा है साथ ही रासायनिक खादों पर व्यय होने वाली धनराशि की बचत भी हो रही है। समाज को शुद्ध हानि रहित फल व सब्जियों की प्राप्ति भी हो रही है।
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भरोसेमंद बैल AGRECULTURE –
कृषि कार्य में अपेक्षित आवागमन के लिए गाय महत्वपूर्ण संसाधन का कार्य करती है। खेतों की जुताई , बुवाई , सिंचाई , निराई आदि में गायों से प्राप्त बैलों की बहुत बड़ी भूमिका होती है। फसलों तथा अनाजों को घर – बाजार आदि में लाने ले जाने मैं बैल जैसे संसाधन सुलभ और सस्ते रहते हैं। जबकि ट्रैक्टर हार्वेस्टर जैसी मशीनें और संसाधन सुलभ नहीं रहती महंगे होने के कारण प्रत्येक किसान के सामर्थ्य से बाहर रहते हैं। अतः गायों से प्राप्त बेल अधिक उपयोगी सिद्ध होते हैं इस प्रकार हम देखें तो मालूम होगा कि गाय हमारे स्वास्थ्य और स्वावलंबन की अक्षय स्रोत है। गाय जब तक दूध देती है हमारे लिए अतिरिक्त आय का स्रोत बनी रहती है , परंतु जब दूध देना बंद कर देती है तो उस समय भी गोबर और मूत्र के रूप में अक्षय ऊर्जा खाद आदि देती रहती है। तब भी अपने ऊपर होने वाले व्यय से अधिक लाभकारी बनी रहती है इन के ऐसे उपयोग से दृष्टि से लोग गोवंश की वृद्धि के लिए अनेक अनुष्ठान यात्राएं आधी करते हैं। ऐसे ही एक स्वामी रामेश्वर ने गोवंश की सुरक्षा और समृद्धि के लिए 2005 में 5830 किलोमीटर की यात्रा की कथा अप्रैल 2017 में नौ दिवसीय विश्व को सम्मेलन किया गौ रक्षण और उनका संवर्धन पुण्यदाई और वंदनीय है।
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