स्वामी विवेकानंद अमृत वचन। amrit vachan
स्वामी विवेकानंद अमृत वचन
वेदांत कोई पाप नहीं जानता , वो केवल त्रुटि जानता है।
और वेदांत कहता है कि सबसे बड़ी त्रुटि यह है कि तुम ,
कमजोर हो , तुम पापी हो , एक तुछ प्राणी हो ,
और तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं है ,और तुम ये वो नहीं कर सकते।
इस दुनिया में सभी भेद भाव किसी स्तर के हैं।
ना की प्रकार के क्योंकि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है।
जब कोई विचार अनन्य रूप से मष्तिष्क पर अधिकार कर लेता है
तब वह वास्तविक भौतिक या मानसिक अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
उठो मेरे शेरों इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो
तुम एक अमर आत्मा हो , स्वछंद जीव हो , सनातन हो
तुम तत्व नहीं हो न ही शरीर हो , तत्व तुम्हारा सेवक है ,तुम तत्व के सेवक नहीं।
हम वो हैं जो हमारी सोच ने बनाया है ,
इसलिए इस बात का ध्यान रखिये ,कि आप क्या सोचते है।
शब्द गौण है ,विचार रहते हैं वे दूर तक यात्रा करते है।
जब तक आप खुद पे विश्वास नहीं करते , तब तक
आप भगवान पर खुद विश्वास नहीं कर सकते।
एक विचार लो ,उस विचार को अपना जीवन बना लो ,
उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो , उस विचार से जिओ।
अपने मष्तिष्क , मासंपेशियों ,नसों,शरीर के हर हिस्से को ,उस विचार में दुब जाने दो
और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो।
यही सफल होने का तरोका है।
ब्रम्माण्ड की साड़ी शक्तियां पहले से हमारी है
वो हुई हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं ,
और फिर रट हैं की कितना अन्धकार है।
हम जितना ज्यादा बाहर जाएंगे और दूसरों का भला कारण
हमारा ह्रदय उतना ही शुद्ध होगा , और परमात्मा उसमे बसेंगे।
सत्य को हज़ार तरीकों से बताया जा सकता है
फिर भी हर एक सत्य ही होगा।
स्वामी विवेकानंद अमृत वचन
अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे
तो इसका कुछ मूल्य है , अन्यथा ,ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है
और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाय उतना बेहतर है।
भगवान् की एक परम प्रिय के रूप में पूजा की जानी चाहिए ,
इस या अगले जीवन की सभी चीज़ों से बढ़कर।
जिस तरह से भिन्न स्रोतों से उत्त्पन धाराएं
अपना जल समुद्र में मिला देती है ,
उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग ,
चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान् तक जाता है।
यदि स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढ़ाया और अभ्यास कराया गया होता
तो मुझे यकीं है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता
जिस क्षण मैंने यह जान लिया की भगवान
हर एक मानव शरीर रूपी मंदिर में विराजमान है
जिस क्षण में हर व्यक्ति के सामने श्रद्धा से खड़ा हो गया
और उसके भीतर भगवान को देखने लगा –
उसी क्षण में बंधनों से मुक्त हु
हर चीज जो बांधती है नष्ट हो गयी और मै स्वतंत्र हूँ।
स्वामी विवेकानंद अमृत वचन
डर कमजोरी की सबसे बड़ी निशानी है
महान कार्य के लिए महान त्याग करने पड़ते हैं
खुदा को कमजोर मान लेता बहुत बड़ा पाप है
आत्मा के लिए भी असम्भव नहीं।
स्वामी विवेकानंद अमृत वचन
ब्रमांड की साड़ी शक्तियां हमारे अंदर निहित है
और हम ही हैं जो अपनी आँखों पर पट्टी
बांधकर अन्धकार होने का रोना रट हैं।
स्वामी विवेकानंद अमृत वचन
अपने जीवन में एक लक्ष्य बनाओ
और तब तक प्रयास करो जब तक वो
लक्ष्य हासिल न हो जाए
यही सफलता का मूल मन्त्र है।
शक्ति जीवन है
निर्बलता मृत्यु है
विस्तार जीवन है
संकुचन मृत्यु है
प्रेम जीवन है
और द्वेष मृत्यु है।
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इस भगवा ध्वज को ‘ श्री रामचंद्र ‘ ने राम – राज्य में ‘ हिंदूकुश ‘ पर्वत पर फहराया था , जो हिंदू साम्राज्य के वर्चस्व का परिचायक है। इसी भगवा ध्वज को ‘ वीर शिवाजी ‘ ने मुगल व आताताईयों को भगाने के लिए थामा था। वीरांगना लक्ष्मीबाई ने भी साँस छोड़ दिया , किंतु भगवा ध्वज को नहीं छोड़ा।
इस भगवा प्लेटफार्म से हम हिंदू अथवा हिंदुस्तान के लोगों से एक सभ्य व शिक्षित समाज की कल्पना करते हैं। जिस प्रकार से राम – राज्य में शांति और सौहार्द का वातावरण था , वैसे ही राज्य की कल्पना हम इस समाज से करते हैं।
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