amrit vachan |अमृत वचन
परम पूज्य श्री गुरूजी ने कहा ( amrit vachan )
” जिस प्रकार अयोग्य सेनापति द्वारा सेना का कुशल सञ्चालन नहीं हो सकता उसी पकारा कार्यकर्ता अकुशल हो तो शाखाएं ठीक नहीं चल सकती। अतः प्रत्येक कार्यकर्ता को संघ का शिक्षण करना अनिवार्य है। ये वर्ग हमे कठिनाईयों में भी ध्येय का स्मरण रखते हुए संघ कार्य सिखाता है। ”
स्वमी विवेकानंद जी ने कहा –
( amrit vachan )
” जब कभी भारत के सच्चे इतिहास का पता लगाया जायेगा। तब यह संदेश प्रमाणित होगा कि धर्म के समान ही विज्ञान दर्शन संगीत साहित्य गणित ललित कला आदि में भी भारत समग्र संसार का आदि गुरु रहा है। ”
माननीय भैया जी ढाणी ने कहा –
( amrit vachan )
” अपने समाज में मनुष्य बल ,धन बल , बुद्धि बल , सब कुछ था परंतु ” मैं इस राष्ट्र का घटक हूं तथा इसके लिए मेरा जीवन लगना चाहिए ” या कर्तव्य भावना व्यक्ति के अंतकरण से स्पष्ट हो जाने के कारण सब प्रकार की शक्ति होते हुए भी हिंदू समाज पराभूत हुआ। इस सोचनीय अवस्था के निदान के रूप में समाज की नस – नस में राष्ट्रीयता की उत्कट भावना को भरकर और इस भावना से प्रेरित होकर संपूर्ण समाज अनुशासित एवं संज्जीवित होकर पुनः दिग्विजय राष्ट्र के रूप में खड़ा हो , डॉक्टर जी के इस महामंगल संकल्प का मूर्त रूप है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। ”
परम पूज्य श्री गुरूजी ने कहा –
( amrit vachan )
” हमारे समाज पर हुए निरंतर आघातों के बाद भी हम जीवित हैं उसका मूल कारण हमारी समाज रचना ही है , जो आज भी विश्व को शांति का मार्ग बताने में समर्थ है। युद्ध ना हो विश्व में शांति हो सब लोग सुखी हो परस्पर वैमनस्य ना हो यह हमारी संस्कृति की कल्पना है। ‘ सर्वे भवंतु सुखिना’ हमारे पूर्वजों ने ही कहा और उसे आचरण में भी उतार कर दिखाया। हमारे में अभी भी मनुष्य को विकसित करने का सामर्थ्य है आवश्यकता इस बात की है कि प्रत्येक के अंतः करण में इसकी विशिष्टता का साक्षात्कार हो। ”
परम पूज्य डॉक्टर हेडगेवार ने कहा –
( amrit vachan )
” हम लोगों को हमेशा सोचना चाहिए कि जिस कार्य को करने का हमने प्रण किया है , और जो उद्देश्य हमारे सामने हैं , उसे प्राप्त करने के लिए हम जितना कार्य कर रहे हैं , जिस गति से एवं जिस प्रमाण से हम अपने कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं क्या वह गति और प्रमाण हमारी कार्य सिद्धि के लिए पर्याप्त है ?”
परम पूज्य श्री गुरूजी ने कहा –
( amrit vachan )
अच्छे व देशभक्त व्यक्ति का निर्माण ही सर्वश्रेष्ठ रचनात्मक कार्य है , और इसका माध्यम है दैनिक शाखा शाखा के नियमपूर्वक चलने वाले कार्यक्रम का संस्कार मन पर पड़ता है और धीरे-धीरे वह स्वभाव बन जाता है। ठीक – ठीक कार्यक्रम करने से उत्साह , पौरूष , निर्भयता , अनुशासन , अखंड रूप से कार्य करने की प्रवृत्ति इत्यादि गुण स्वभाव के अंग बन जाते हैं। विश्व का इतिहास इस बात का साक्षी है कि बड़े से बड़ा काम साधारण से दिखने वालों ने ही किए हैं। ”
परम पूज्य रज्जू भैया जी ने कहा –
( amrit vachan )
” यह राष्ट्र हजारों वर्षों से हिंदू राष्ट्र है , हिंदू बनाना है नहीं है , स्थापित नहीं करना है , इसकी घोषणा भी नहीं करनी है , अपितु हिंदू राष्ट्र का सर्वांगीण विकास करना है। हिंदू अभी सुप्त अवस्था में है थक गया है , जब यह जागेगा तो ऐसी प्रदीप्त और तेजस्विता लेकर जागेगा की सारी दुनिया इसकी कर्मठता से प्रकाशित हो जाएगी। ”
मातृभूमि गान से गूंजता रहे गगन। गणगीत rss
संघ चेतना बढ़ना अपना काम है।rss geet |
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