रक्षाबंधन उत्सव sangh utsaw raksha bandhan
अमृत वचन amrit vachan raksha bandhan –
परम पूज्य श्री गुरूजी ने कहा- ” रक्षाबंधन के पवित्र पर्व पर , मन में निश्चय करें कि , स्नेह की सच्ची अनुभूति लेकर कंधे से कंधा मिलाकर अपने वास्तविक बंधुत्व का भाव उत्पन्न कर शुद्ध पवित्र एकात्मक जीवन उत्पन्न करेंगे। यही आज के पुण्य पर्व पर अपने लिए आह्वान तथा संदेश है।”
रक्षाबंधन संघ एकल गीत ( raksha bandhan geet rss )-
ekal geet raksha bandhan
हिंदू – हिंदू हम बंधु – बंधु हैं , बिंदु – बिंदु हम महासिंधु है।
हम अक्षयवट तरु विशाल हैं , सत्य सनातन चिर त्रिकाल है।
वैष्णव , शैव , शाक्त ,सिख शाखा , बौद्ध , जैन हम विविध प्रशाखा।
हम अनेक में एक हिंदू हैं।हिंदू – हिंदू हम बंधु – बंधु हैं। ।
हम न अवर्ण , सवर्ण कभी हैं , नहीं वैश्य ब्राह्मण क्षत्रिय हैं।
हम ना शूद्र हरिजन बनवासी , हम केवल हिंदू अविनाशी।
हम विराट मानव स्वयंभू हैं।हिंदू – हिंदू हम बंधु – बंधु हैं। ।
यहां न कोई द्रविड़ आर्य है , कोई न आदिम नही अनार्य है।
ऊंच-नीच हम नहीं जानते , अगला पिछड़ा नहीं मानते।
हम समग्र निर्दोष इंदु हैं।
हिंदू – हिंदू हम बंधु – बंधु हैं। बिंदु – बिंदु हम महासिंधु हैं। ।
विचारणीय बिंदु ( Raksha bandhan ) –
भारत त्योहारों का देश है। भारत में पूरे वर्ष त्यौहार आता – जाता रहता है। संघ में 6 प्रकार के उत्सव मनाए जाते हैं। जिसमें से एक उत्सव रक्षाबंधन भी है। रक्षाबंधन श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रक्षाबंधन दो शब्दों के मेल से बना है रक्षा + बंधन अर्थात वह बंधन जो रक्षा के लिए बांधा जाए।
इस दिन भारतीय संस्कृति में बहन ने अपने भाई को कलाई पर राखी बांधकर दीर्घायु की कामना करती है और भाई रक्षा का वचन देता है।
संघ में रक्षा सूत्र भगवा ध्वज को बांधा जाता है , और यह व्रत किया जाता है कि हमारी संस्कृति , हमारे कार्य , हमारे मान – सम्मान की रक्षा यह भगवा ध्वज करता रहे।स्वयंसेवक भगवा ध्वज को रक्षा सूत्र बांधने के उपरांत आसपास की बस्ती व सेवा बस्ती में टोली बनाकर निकलते हैं और सभी को कलावा बांधकर उनसे इस संस्कृति की रक्षा का वादा करते हैं। इस पर्व स्वयंसेवकों ने विशेष बनाया है , यह पर्व उसी प्रकार शुद्ध और निश्चल है जिस प्रकार एक बहन के लिए यह पर्व होता है। स्वयंसेवक राष्ट्र कार्य हेतु सेवा बस्ती अर्थात वह बस्ती जहां सेवाओं , सुविधाओं का अभाव रहता है उन बस्ती को सेवा बस्ती कहते हैं। वहां स्वयंसेवक उनकी हर प्रकार की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। सेवा बस्ती में सेवा करते हुए स्वयंसेवक यही गीत गाते और आगे बढ़ते जाते हैं –
” संगठन सूत्र में मचल-मचल , हम आज पुनः बंधते जाते।
मां के खंडित – मंडित मंदिर , का शिलान्यास करते जाते। ।”
रक्षाबंधन कब प्रारंभ हुआ और क्यों प्रारंभ हुआ यह अनेक प्रकार की किवदंतियां हैं। एक समय की बात है देवासुर संग्राम में देवताओं की कई हार हो चुकी थी। इंद्र देवताओं की ओर से नेतृत्व कर रहे थे। उनके विजय के लिए इंद्राणी ने इंद्र के हाथ पर विजय सूत्र बांधा और यह कामना की इस युद्ध में देवताओं की विजय हो। अंततोगत्वा देवताओं की विजय हुई। रक्षाबंधन स्पष्टतः रक्षा के लिए वचन अथवा बंधन का पर्व है। इस बंधन के कारण आत्मरक्षा तथा शरणागत की रक्षा करना रक्षा सूत्र पहनने/ धारण वाले की जिम्मेदारी हो जाती है। पूर्व समय में ब्राह्मण अपने यजमानों के हाथ/कलाई पर कलावा बांधकर उनसे अपनी रक्षा अपने आश्रम , यज्ञ आदि की रक्षा का प्रणय करवाते थे। यजमान उन्हें सुरक्षा और निर्भयता का भरोसा दिलवाते थे –
” येन बद्धो बलिराजा दानवेंद्रो महाबलाः
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल। । “
इस श्लोक का भावार्थ है – जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेंद्र राजा बलि को बांधा गया था। उसी रक्षासूत्र से मैं तुझे बांधता हूं हे रक्षे तुम अडिग रहना तुम अपने संकल्प से कभी विचलित ना होना।
इसी प्रकार जब मध्यकाल में नारियों का सम्मान घट रहा था उनके मान सम्मान की हानि हो रही थी , उन्हें व्यापार की वस्तु समझ कर उनका शोषण किया जा रहा था। तब क्षत्राणियों ने अपनी रक्षा के लिए अपने भाइयों और संरक्षकों के हाथ पर रक्षा सूत्र बांधकर उनसे इस प्रकार के कुरीतियों और दुराचार का अंत करने का प्रार्थना किया इस पर उन्हें विजय भी प्राप्त हुई।
रक्षाबंधन का स्वतंत्रता संग्राम में भी विशेष महत्व था जिसका जिक्र 1905 में प्रकाशित “मातृभूमि वंदना” में मिलता है उसमें स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम में रवींद्रनाथ ठाकुर ने बंगाल विभाजन का विरोध किया और वहां के लोगों को रक्षा सूत्र और एकजुट रहने का संदेश देते हुए आपस में राखी बांधी गई थी।
उसमें उल्लेख मिलता है ” हे प्रभु मेरे बंग देश की धरती , नदियां , वायु , फूल सब पावन हो! हे प्रभु मेरे बंग देश के प्रत्येक भाई-बहन के उर अंतःस्थल अविछन्न अविभक्त एवं एक हो। ”
इस आवाहन से वहां के समुदाय वहां के लोगों ने एकजुट होने का संदेश दिया और मिल-जुलकर बंगाल विभाजन का विरोध किया जिसके कारण बंगाल विभाजन की राजनीति में सक्रियता आई।
वर्तमान समय में भारत में ही नहीं अपितु आसपास के पड़ोसी देश जैसे बंगाल , भूटान , म्यांमार आदि में भी रक्षाबंधन का पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई को रेशमी राखियां कलाई पर बनती है माथे पर तिलक लगाती हैं और दीर्घायु की कामना करती है। भाई बहन की प्रतिज्ञा से प्रसन्न होकर अपनी बहन को रक्षा करने का वचन देता है।
इसका पौराणिक महत्व भी है एक समय की बात है जब श्री कृष्ण शिशुपाल का चक्र सुदर्शन से वध कर रहे थे। तब उनकी तर्जनी उंगली में चोट आई , जिसके कारण उनकी उंगली से कुछ रक्त की बूंदे गिरने लगी। इस दृश्य को द्रोपदी ने देखा बिना देर किये द्रोपदी ने उस उंगली से गिरते हुए रक्त को अपनी साड़ी के पल्लू से बांधा और उस रक्त के धारा को रोका। इस पर श्री कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा का व्रत लिया। द्रौपदी का चीर हरण जब दुशासन कर रहा था तब की थी तो द्रोपदी के आवाहन पर कृष्ण उनकी सहायता करते हैं।
रक्षाबंधन संघ उत्सव गणगीत ( raksha bandhan rss song ) –
दिव्य साधना राष्ट्रदेव की , खिले सुगंधित हृदय सुमन।
ध्येय एक ही माँ भारत की , गूंजे जय – जय विश्व गगन।
शाखा रूपी नूतन मंदिर , धन्य – धन्य अपना जीवन।
एकनिष्ठ हो ढाल रहा है , शुभ संस्कारित तन और मन।
स्नेहमई अनुपम तप धारा , ज्ञान सुधा पा सभी मगन।
ध्येय एक ही माँ भारत की , गूंजे जय – जय विश्व गगन।
कहां थे साधन कहां थी सुविधा , संकट में भी सदा बढे।
संकल्पित मन , कर्म तपस्या , से ही साधक शिखर चढ़े।
स्वाभिमान से विचरें जग में , देख सभी में अपमान भी।
ध्येय एक ही माँ भारत की , गूंजे जय – जय विश्व गगन।
नए-नए शुभ परिवर्तन को , अंतर्मन से स्वीकारें।
कैसी भी हो कठिन चुनौती , हिम्मत अपनी ना हारे।
हमने वह दक्षता पाई है , वैभव स्वयं करें वंदन।
ध्येय एक ही माँ भारत की , गूंजे जय – जय विश्व गगन।
अटल अडिग है निश्चय अपना , ध्येय सुपथ न छोडेंगे।
नवयुग के हम बनें भगीरथ , गंगधार भी मोड़ेंगे।
मंगलमय सुंदर रचना हो , रात – दिवस बस यही लगन।
ध्येय एक ही माँ भारत की , गूंजे जय – जय विश्व गगन। ।
दिव्य साधना राष्ट्रदेव की , खिले सुगंधित हृदय सुमन।
ध्येय एक ही माँ भारत की , गूंजे जय – जय विश्व गगन।
सुभाषित ( Raksha bandhan ) –
वाणी रसवती यस्य , यस्य श्रमवती क्रिया।
लक्ष्मी धनवती यस्य , सफलं तस्य जीवनम्। ।
अर्थ – जिसकी वाणी में मधुरता है , जो परिश्रमशील है तथा उसका धन दान के लिए है , उसका जीवन सफल माना जाता है।
नहि वेरेन वेरानि सम्मंतीथ कुदाचन।
अवेरेन च सम्मन्ति , एस धम्मो सनन्तनो। ।
अर्थ – वैर कभी वैर से शांत नहीं होता , अवैर से , स्नेह , प्रेम से ही शांत होता है। यही सनातन धर्म है।
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