भगवा अग्नि का प्रतीक है। जिस प्रकार अग्नि सारी बुराइयों को जलाकर स्वाहा कर देती है , उसी प्रकार भगवा भी सारी बुराइयों को समाज से दूर करने का प्रयत्न कर रहा है। संपूर्ण भारत भगवामय हो ऐसा संघ का सपना है। यहाँ हमारा भगवा से आशय बुराई मुक्त समाज से है।
इस भगवा ध्वज को ‘ श्री रामचंद्र ‘ ने राम – राज्य में ‘ हिंदूकुश ‘ पर्वत पर फहराया था , जो हिंदू साम्राज्य के वर्चस्व का परिचायक है। इसी भगवा ध्वज को ‘ वीर शिवाजी ‘ ने मुगल व आताताईयों को भगाने के लिए थामा था। वीरांगना लक्ष्मीबाई ने भी साँस छोड़ दिया , किंतु भगवा ध्वज को नहीं छोड़ा।
इस भगवा प्लेटफार्म से हम हिंदू अथवा हिंदुस्तान के लोगों से एक सभ्य व शिक्षित समाज की कल्पना करते हैं। जिस प्रकार से राम – राज्य में शांति और सौहार्द का वातावरण था , वैसे ही राज्य की कल्पना हम इस समाज से करते हैं।
एक स्वयंसेवक में यह गुण की कल्पना की जाती है –
” पैर में चक्कर , मुंह में शक्कर ,
दिल में आग , शीश पर फाग। ।
अर्थात विश्राम नहीं करना , सदैव लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना।
कोई कितना ही कड़वा बोले धैर्य रखकर मुस्कुराते रहना।
दिल में लक्ष्य की प्राप्ति की आग धधकती रहे और शीश पर भगवा रंग रहे जो बुराइयों का सदैव नाश करती रहे। ।