चले चले हम निशिदिन अविरत , चले चले हम शतत चले
संघ गीत
चले चले हम निशिदिन अविरत , चले चले हम शतत चले ,
कर्म करे हम निरलस पल पल , दिनकर सम हम सदा जले। । 2
सोते नर के भाग्य सुप्त हैं , जागे नर का भाग्य जगाता।
उठने पर वह झट से उठता , पग बढ़ते नहीं वह भी बढ़ता।
आप्त वचन यह ऋषि मुनियों का , नर है नर का भाग्य विधाता।
पुरखों की यह सीख समझकर , कर्मलीन हो सदा चले। ।
आर्यधर्म को पुनः प्राणमय , करने निकले घर से शंकर।
केरल से केदारनाथ तक , घूमे गुमराहों पर जयकर।
विचरे अचल मरुस्थल , ऐक्य तत्व का शंख बजाकर।
उस दिग्विजयी की गति लेकर , सतत चले कर्मण्य बने। ।
गाड़ी मेरा घर है कहकर , जिस ने की संचार तपस्या।
मैं नहीं तू ही तू यह जपकर , जिस ने की मां की परिचर्चा।
जय ही जय की धुन से जिस ने , पूरी की जीवन की यात्रा।
उस माधव के अनुचर हम नित , काम करे अविराम चले। ।
चले चले हम निशिदिन अविरत , चले चले हम शतत चले। ।
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