भारत का भूगोल तड़पता। गण गीत | bharat ka bhugol tadpta geet |

भारत का भूगोल तड़पता bharat ka bhoogol tadpta geet

 

भारत का भूगोल तड़पता , तड़प रहा इतिहास है
तिनका-तिनका तड़प रहा है , तड़प रही हर सांस है |
सिसक रही है सरहद सारी , मां के छाले कहते हैं
ढूंढ रहा हूं किन गलियों में , अर्जुन के सूत रहते हैं
गली-गली और चौराहों पर , फिर आवाज़ लगाता हूं  |

 

मन का गायक रोता है पर , मजबूरी में गाता हूं
जब तक मेरी खोई धरती , वापस नहीं दिलाओगे
सच कहता हूं तब तक मुझसे , गीत नहीं सुन पाओगे  |
भारत का भूगोल तड़पता , तड़प रहा इतिहास है
तिनका तिनका तड़प रहा है , तड़प रही हर सांस है।

 

मां का आंचल तार-तार है , और मनाए हम जलसे
रक्त पान के बदले चुप – चुप , पीते हैं मधु के कलसे
नस – नस ऐंठ रही जननी की , हम उलझे है पायल में ,
घायल मां को भुला दिए हैं , मेहंदी , महवर, काजल में  |

 

जब तक मेरी खोई धरती , वापस नहीं दिलाओगे
सच कहता हूं तब तक मुझसे , गीत नहीं सुन पाओगे |
भारत का भूगोल तड़पता , तड़प रहा इतिहास है
तिनका तिनका तड़प रहा है , तड़प रही हर सांस है।

 

आज नई पीढ़ी की ज्वाला , बुझी-बुझी क्यों लगती है
चबा जाए जो सूर्य पिंड को , कहां गई वह शक्ति है  |
मुट्ठी भर बारूद उड़ाकर , जिसने आंगन जला दिया
कैसे तुमने उस दुश्मन को , इतनी जल्दी भुला दिया |

 

जब तक मेरा खोया आंगन , वापस नहीं दिलाओगे
सच कहता हूं तब तक मुझसे , गीत नहीं सुन पाओगे  |
भारत का भूगोल तड़पता , तड़प रहा इतिहास है
तिनका तिनका तड़प रहा है , तड़प रही हर सांस है। तड़प रही हर सांस है…..

 

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यह गण  गीत संघ के सभी सभी अवसरों पर गणगीत के रूप में गाया जाता है जो ओज रस से परिपूर्ण है। हम यह गीत का संकलन इस उद्देश्य से तैयार कर रहें है जिससे आपको आसानी से गीत उपलब्ध हो सके अन्य ढेर साड़ी गीते भी इस वेबसाइट पर उपलब्ध है।

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