3 Motivational hindi stories
छत्रपति शिवाजी महाराज का चरित्र
( Hindi stories for warriors )
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म किन कठिनाइयों तथा किन परिस्थितियों में हुआ , यह तो सर्वविदित है। शिवाजी को कितनी ही बार कैद की सजा मिली , किंतु कोई भी सलाखें उनको ज्यादा दिन तक कैद नहीं कर पाई।
शिवाजी बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे , वह एक विशाल हृदय वाले कुशल योद्धा थे। उनकी तलवार जब भी उठती कल्याण और अभयदान के लिए ही उठती। शिवाजी तलवार के धनी थे और साथ ही चरित्र के भी , उन्होंने जितना भी युद्ध लड़ा उन सभी में विजय को प्राप्त हुए।
शिवाजी के सेनापति ने एक युद्ध में कल्याण का किला जीता। सेनापति और उनके सैनिकों ने बड़ी ही कुशलता का परिचय देते हुए किले में हथियार का जखीरा और बेशुमार कीमती संपत्ति अभी जप्त की। यह किला मुगलों का था , जिस प्रकार मुगल , हिंदू राजाओं को छल से परास्त करते हुए उनकी स्त्रियों को कैद करके , उनसे विवाह करते और उनका शोषण करते। ऐसा ही मौका शिवजी के सेनापति को हाथ लगी।
सेनापति को मुगलों की कई सारी सुंदर रानियां कैद के रूप में प्राप्त हुई। सेनापति ने उन रूपवती स्त्रियों को पालकी में बैठाया , और छत्रपति शिवाजी को भेंट स्वरूप सौंपने का विचार किया। इसके लिए सेनापति ने सभी रूपवती स्त्रियों को पालकी में बिठाकर शिवाजी महाराज के दरबार में पेश हुए ।
शिवाजी को अपने सैनिकों द्वारा जीत और कल्याण किला जप्त करने की सूचना पहले ही मिल गई थी। वह प्रसन्न थे और अपने सेनापति और सैनिकों के सकुशल लौट आने की प्रतीक्षा में थे। ज्यों ही सेनापति दरबार में उपस्थित हुए , शिवाजी ने अपने सेनापति को गले लगाया और उसे खूब बधाइयां दी। सेनापति भी अपनी इस प्रसन्नता से उत्साहित थे। उन्होंने महाराज के लिए भेंट लाया था , वह शिवाजी से आग्रह करके उन्हें भेंट करना चाह रहे थे।
शिवाजी उत्साहित थे उन्होंने पालकी का पर्दा उठा कर देखा तो , अंदर रूपवती स्त्रीयां बैठी हुई थी। शिवाजी शर्म और लज्जा से अपना सिर नीचे झुक ला लेते हैं , और कहते हैं काश मेरी माता भी रूपवती होती तो आज मैं भी सुंदर होता !
शिवाजी महाराज ने अपने सेनापति को कड़े स्वर में चेतावनी देते हुए कहा के ! सेनापति तुम इतने समय से हमारे साथ रह रहे हो और इतने युद्ध में हमने विजय प्राप्त की , किंतु तुमने अभी तक मुझे नहीं जाना। हम मुगल की भांति नहीं है , जो पराई स्त्रियों को बलपूर्वक हरण / कैद करें , यह कायरता है। दूसरे की माता – बेटियां भी हमारे माता – बेटियों की तरह ही है। यथाशीघ्र तुम इन्हें इनके राज्य स-सम्मान पहुंचाकर हमारे मान सम्मान की रक्षा करो ।
सेनापति को अपनी गलती का आभास हुआ उन्होंने शिवजी से क्षमा मांगी और पुनः सभी स्त्रियों को उनके स्वमियों तक पंहुचया गया।
शिवाजी महाराज के इस प्रकार के व्यवहार से शत्रु दल में शिवाजी के प्रति आदर भाव को जागृत किया। सभी महिलाएं शिवाजी महाराज के सम्मान और वीरता की जय – जयकार करने लगी।
संकलन कर्ता – ( निशिकांत )
चन्द्रगुप्त की वेशकीमती वस्तु
( Hindi stories on chandragupta )
एक समय की बात है चंद्रगुप्त और सिकंदर में कई दिनों तक युद्ध चलता रहा। चंद्रगुप्त किस सेना इतनी चतुर और कुशाग्र थी कि उन्होंने अपनी कम संख्या होते हुए भी सिकंदर के वीरों की सेना जो विश्व विजय की कामना करने वाले है। उस सिकंदर के सैनिकों को नाकों चने चबवाते हुए उसे करारी मात दी।
चंद्रगुप्त क के सैनिकों ने उनके पास से बेशकीमती रत्न जड़ित एक सुंदर सी पेटी युद्ध में बरामद हुई। सेनापति वह पेटी चंद्रगुप्त को भेंट करने के लिए शिविर में उपस्थित हुए। दरबार सजा हुआ था चंद्रगुप्त आसन पर विराजमान थे , आचार्य चाणक्य की उपस्थिति से दरबार की शोभा और बढ़ रही थी। सेनापति उस रत्न जड़ित पेटी को लेकर उपस्थित हुए और उसने चंद्रगुप्त को भेट किया। उस पेटी की नक्काशी आकर्षक थी , चंद्रगुप्त ने पेटी की प्रशंसा करते हुए भेट को स्वीकार किया। किंतु चंद्रगुप्त ने दरबार में यह प्रश्न किया कि यह इतनी बेशकीमती है , इस पेटी के अंदर ऐसी क्या वस्तु रखी जाए ? जो इस बेटी के अनुरूप मूल्यवान हो ?
एक दरबारी ने कहा इसमें खजाने की चाबी या रखी जाए , दूसरे दरबारी ने सुझाव दिया इसमें राजस्व के मूल्यवान हीरे – जवाहरात रखे जाएं , किसी दरबारी ने सुझाव दिया इसमें कीमती वस्त्र, जीते गए राज्यों के मूल्यवान कागजात।
इस प्रकार सभी लोगों ने अपने अपने सुझाव चंद्रगुप्त के सामने प्रस्तुत किए। किंतु चंद्रगुप्त को यह सभी सुझाव उचित नहीं लगा। वह एका-एक सोच में पड़ गए , उन्हें एहसास हुआ कि मुझे वीर बनाने और मेरे अंदर पौरुष , पुरुषार्थ , प्रक्रम , साहस आदि का जितना भी संग्रह है , वह सभी मुझे ग्रंथ और गुरु के आशीर्वाद से प्राप्त हुआ है। अतः ग्रंथ के अंदर ही सभी शक्तियां , सभी ज्ञान समाहित है , उससे मूल्यवान और क्या हो सकता है ?
यह विचार करते हुए चंद्रगुप्त के मुख पर तेज आता है , उनका मुख कुछ कहने को प्रस्तुत होता है। सभी दरबारी यह जानना चाहते हैं कि आखिर चंद्रगुप्त ने इस मूल्यवान पेटी में क्या रखने का विचार किया ? इस पर चंद्रगुप्त ने कहा मैं इस पेटी में मूल्यवान ग्रंथों का संग्रह रखूंगा। जिसने मुझे मगध का सिंहासन दिलवाया और यही ग्रंथ मेरी प्रजा के हित में है। इसके कारण मेरी प्रजा में ज्ञान आदि का विकास संभव है।
चंद्रगुप्त की बात सुनकर सभी दरबारी चंद्रगुप्त की जय का नारा लगाने लगे। आचार्य चाणक्य अपने शिष्य के विचारों से प्रफुल्लित हुए उन्होंने चंद्रगुप्त को आशीर्वाद दिया।
एक और गृह त्याग
आदिकाल की बात है जिस प्रकार सिद्धार्थ गृह त्याग करके तप – साधना के लिए वन को गए थे। उन्होंने अपना संपूर्ण राज – पाठ , वैभव पत्नी व बेटे तक को त्याग दिया था। और ज्ञान प्राप्ति के उपरांत बुद्ध बनकर लौटे थे। उन जैसी अनेक कथाओं से प्रभावित होकर एक 8 साल का बालक जो इस संसार के सुख सुविधाओं को त्याग कर ज्ञान के मार्ग पर चलना चाहता था। किंतु वह सिद्धार्थ की भांति चोरी – चोरी नहीं बल्कि वह मातृ आज्ञा से जाना चाहता था।
बालक ने अपनी बात माता के सामने रखी बिना त्याग के तत्वज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। इसलिए मां मुझे आज्ञा दो मैं वन जाकर तत्वज्ञान और परम ज्ञान को प्राप्त कर सकूं।
यह बालक बेहद ही तेजस्वी और कुशाग्र बुद्धि का था। बालक का नाम शंकर था , जो बाद में आदि गुरु शंकराचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने अपनी माता को एक विख्यात कथा सुनाई जिसमें महर्षि नारद मुनि की कथा थी , महर्षि जब 5 वर्ष के थे उनके सिर से माता का स्नेह समाप्त हो गया था। उन्होंने जब महात्माओं से हरि कथा सुनी तो वह स्वयं भगवान विष्णु से साक्षात्कार करने निकल पड़े , जब उनकी आयु मात्र 5 वर्ष की थी।
यह कथा सुनाते हुए शंकराचार्य ने माता से कहा माता वह केवल 5 वर्ष के थे और उनके माथे मां का आशीर्वाद भी नहीं था। किंतु मैं 8 वर्ष की अवस्था में हूं और मेरे माथे पर मेरी माता का आशीर्वाद सदैव बना रहेगा। इसलिए मुझे परमज्ञान और मोक्ष प्राप्ति के लिए वन गमन की आज्ञा प्रदान करें।
जब उन्होंने शंकर ने गृह त्याग किया तब उनके सगे – संबंधी – समाज के लोगों ने कई प्रकार की बातें कि , जिसका जवाब उन्होंने बेहद ही सादे तरीके से दिया – ‘ मैं कोई पाषाण हृदय नहीं हूं ‘ जो अपनी मां को अकेला और असहाय छोड़ कर जाऊं। मेरी माता ने जब संतान की इच्छा की थी तब उन्हें स्पष्ट बता दिया गया था कि आपका पुत्र अल्पज्ञ होगा तो दीर्घजीवी होगा , और सर्वज्ञ होगा तो अल्पज्ञ होगा। तब माँ ने सर्वज्ञ मांगा था इसलिए , अब मुझे अल्पजीवी बनकर मातृ भक्ति करनी है।
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महत्वपूर्ण जानकारी , कुछ शब्दों को edit करने की आवश्यकता है जैसे सेनापति ने उन स्त्रियों किया इसी प्रकार एनी भी हैं जी
धन्यवाद